आलोचना >> उपन्यास की समकालीनता उपन्यास की समकालीनताज्योतिष जोशी
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उपन्यास की समकालीनता' बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों में लिखे गए उपन्यासों के सिंहावलोकन का यत्न है….
उपन्यास की समकालीनता
‘उपन्यास की समकालीनता’ बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दो दशकों में लिखे गये उपन्यासों के सिंहावलोकन का यत्न है। इस यत्न में उल्लेखनीय उपन्यासों का मूल्यांकन भी हो पाया है तथा उनकी समकालीन प्रासंगिकता का निरूपण भी। पूरी पुस्तक इस तरह से लिखी गयी है कि उसमें उपन्यास के भाव और कला पक्षों पर विचार के साथ-साथ अपने समय में होने का निरीक्षण भी हो सके। पुस्तक व्यावहारिक निकषों पर उपन्यासों को देखती है और उपन्यास जैसी बहुस्तरीय विधा की जनतान्त्रिकता को भी परखती है। पुस्तक उन्हीं उपन्यासों को चर्चा में शामिल करती है जो हिन्दी के औपन्यासिक परिदृश्य की विविधता तो दिखाते ही हैं, उसके वैशिष्टय को भी सूचित करते हैं। इस स्तर पर देखें तो यह कृति बीसवीं शताब्दी के इन अन्तिम वर्षों के वैविध्यपूर्ण उपन्यास-जगत का समग्र साक्षात्कार बनकर उभरती है जिसमें व्यक्ति, समाज, परिवेश तथा स्थितियों के भीतर जीवन के विभिन्न स्तरों, जटिलताओं, विडम्बनाओं तथा अन्तर्विराधों के साथ मानवीय आकांक्षाओं की खोज का प्रयत्न भी है।
उपन्यास केवल कलात्मक निर्मिति नहीं है और न ही केवल जीवनानुभवों का वृत्तान्त ही; वह एक समग्र रचना है जो जीवन को विराट् मानवीय संघर्षों के साथ उसकी ऊर्जस्वित मानवीय आकांक्षाओं में उठता है, उसे जीवन्तता के साथ अंकित करता है। युवा आलोचक ने व्यापक मानवीय तथा समाज शास्त्रीय निकषों पर उपन्यासों को जाँच कर इस पुस्तक में इसी बिन्दु पर पहुँचने की कोशिश की है। जाहिर है, इस कोशिश को उपन्यास की आलोचना में एक महत्त्वपूर्ण प्रस्थान माना जाएगा।
‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति आलोचना सम्मान’ प्राप्त इस पुस्तक का प्रस्तुत है नवीन संस्करण।
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